जब दंडकारण्य क्षेत्र नगरीय बसावट के अंतर्गत आया तो भौगोलिक दृष्टि से महाराष्ट्र नामक क्षेत्र अस्तित्व में आया। सातवाहन राजा महाराष्ट्र के पहले राजा थे। करीब 2500 साल पहले की बात होगी। महाराष्ट्र तब समृद्धि के चरम पर था। प्रतिष्ठान [अब पैठण] सातवाहन राजाओं की राजधानी थी और जीर्णनगर [अब जुन्नर] उप-राजधानी का शहर थाय। उस समय दुनिया भर के व्यापारी कल्याण बंदरगाह पर अपना माल उतारते थे। फिर वे नाणेघाट से घाट के उपर आते थे और जुन्नर होते हुए पैठण में व्यापार करते थे। व्यापारके लिए कर जमा करते थे, उसके निशान अभी भी जीवित है। यानी कल्याण-नाणे घाट-जुन्नर-नगर-पैठण महाराष्ट्र का प्राचीन व्यापार मार्ग था। तब स्वाभाविक रूप से इस मार्ग पर जुन्नर, बोरी, नगर, पैठण जैसे बाजार तब से प्रसिद्ध थे।
उस समय के राज्यों ने इस व्यापार मार्ग की रक्षा के लिए विभिन्न स्थानों पर किलों का निर्माण किया ताकि व्यापार फल-फूल सके और हमारा क्षेत्र समृद्ध होता रहे।
भैरवगढ़, जीवनधन, चावंड, हडसर, निमगिरी, शिवनेरी, नारायणगढ़, शिंदोला, रांजणगढ़, कोम्बड किला जैसे किले जुन्नर के पहाड़ी इलाकों से गुजरते हुए जुन्नर को और व्यापारी मार्ग को लूटपाट से बचाने के लिए बनाए गए थे। अधिकांश किले जुन्नर में बनाए गए थे।
देश-विदेश के व्यापारी अपने साथ अपनी संस्कृति लेकर आए, इसलिए जुन्नर के डेक्कन कॉलेजने किये गये उत्खनन के दौरान उन्हें ग्रीक देवता “यूरोस”, चीनी मिट्टी के बर्तन, पुराने सिक्के, सोने के सिक्के और शिलालेख मिले। आने वाले व्यापारियों ने स्वतंत्र रूप से दान दिया। इसलिए जुन्नर क्षेत्र में हर धर्म, धर्मपीठ का विकास हुआ। भौगोलिक अनुकूलता और उसे राजश्रय के साथ-साथ लोकाश्रय भी जुन्नर क्षेत्रमे मिल रहा था।
और इसलिए लेन्याद्रि को बौद्ध गुफाओं के एक अमूल्य स्थान के रूप में बनाया गया था, जैन देवी आंबा-अंबिका की गुफाओं को मानमोडी पहाड़ियों में बनाया गया था, प्राचीन जैन मंदिरों का निर्माण जुन्नर शहर में किया गया था, गिरिजात्मक गणपति की स्थापना मध्यकाल में लेन्याद्री बौद्ध गुफाओं में की गई थी, ओतूर गाव जैसी जगहों में वैष्णव संप्रदाय के रामकृष्ण हरि मंत्र संत तुकाराम महाराज को उनके गुरु चैतन्य महाराज ने दिया था।
संत ज्ञानेश्वर ने अपने महिष को आळे गांव में दफनाया, खिरेश्वर नामक एक पांडव कालीन मंदिर पिंपलगांव बांध के पास खुबी गांव में बनाया गया था, हरिश्चंद्र किले की अभेद्य संरचना खिरेश्वर के उत्तर में खड़ी है। समय के साथ, बहुत कुछ बदल गया है, कई शासन आए और गए। जिन लोगों ने सैकड़ों वर्षों तक वैभव का अनुभव किया था, वो कभी गुलाम बनते गये, और कभी-कभी दूसरे के दरबार में नौकरी करने लगते थे।
आम आदमी, किसान, कुनबी, बलूतेदार इनकी तकलीफे शुरू हो गई थी, ये सिलसिला सदीयोंतक चलता रहा। ..और तभी एक सरदार के घर सही समय पर बेटा पैदा हुआ, उसी साधारण लेकिन असामान्य सपने के साथ। फरवरी 1628, स्थान शिवनेरी किला, शिवबा। सर रिचर्ड टेंपल ने एक जगह शिवनेरी के बारे में लिखा है कि “शिवनेरी जन्म लेने के लिए सबसे आदर्श स्थान है”। शिवाजी महाराज 6 वर्ष की आयु तक शिवनेरी किले में रहे।
जीजामाता और शिवबा वहां रोजाना शिवाई देवी के मंदिर जाते थे। आज भी वैभवशाली शिवाई देवी की मूर्ति शिवनेरी किले पर विद्यमान है। उस समय का भविष्य आज का इतिहास बन गया है और कई लोगों की प्रेरणा भी। जुन्नर और कला में सुधार का पुराना संबंध है। महात्मा ज्योतिबा फूल की पुस्तक “किसान का चाबूक” में जुन्नर कोर्ट के फैसले का उल्लेख है,
वरिष्ठ चित्रकार सुभाष अवचट, मुक्तांगन, कवि, लेखक, विचारक, अनिल अवचट, मराठी बाना के अशोक हांडे, डॉ. शिवाजी का पुनः जागरण करने वाले डॉ. अमोल कोल्हे, विठाबाई नारायणगांवकर, जिन्होंने तमाशा लोककला को देश के कोने-कोने तक पहुँचाया, दत्ता महाडीक, प्रकाश खांडगे इनका भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है , 3 राष्ट्रपति पुरस्कार से सन्मानित मंगेश हाडवळे,
नम्रता अवटे, जो मराठी सीरीज में अपनी जगह बना रही हैं ये और बहुत सारे व्यक्तीगण मान्यवर जुन्नर की धरती का नाम उजागर कर रहे है I जुन्नर का नाम पहले जीर्णनगर और फिर जुन्नर हो गया। जुन्नर शहर तक का क्षेत्र पश्चिम में पहाड़ी और पूर्व में मैदानी है। इसलिए पर्वत श्रंखला में मालशेज घाट, नानेघाट, दाऱ्या घाट, इनकी अभेद्यता दर्शनीय है।
फलो मे आम और केला इंडो-बर्मा क्षेत्र के मूल निवासी हैं, जहां उनके मूल बीज पाए जाते हैं। वही मूल बीज मालशेज घाट में भी पाया जाता है। जुन्नर में माणिकडोह बांध के नजदिक एक तेंदुआ अश्रयालय स्थापित किया गया है, जिसने हमेशा जानवरों और पक्षियों पर दया दिखाई है और लगभग 36 तेंदुए वर्तमान में वहां उपचार प्राप्त कर रहे हैं। समुद्र तल से 2260 फीट की ऊंचाई पर स्थित, जुन्नर पठार को भारत के पहले वन रेंजर डॉ. Alexandor गिब्सन ने भारत को स्वास्थ्य केंद्र कहा है।
उन्होंने देखा कि स्वच्छ और खुली हवा सांस की बीमारियों को ठीक करती है। इसीलिए ब्रिटिश शासन के दौरान वह अंग्रेजों को जुन्नर जाकर आराम करने की सलाह देते थे। उन्होंने 1839 में जुन्नर के हिवरे गाव में एक वनस्पति उद्यान की स्थापना की थी। दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो टेलिस्कोप 1995 में जुन्नर के खोडद गाँव में बनाया गया था, जो जुन्नर की भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान को उजागर करता है।
इसके साथ अरवी गाव का विक्रम उपग्रह भु नियंत्रण केंद्र, आणे घाट में बना हुआ प्राकृतिक पुल, बोरी गांव में कुकड़ी नदी बेसिन में पाया गया 8 लाख साल पुराना ट्रेफा, ये सभी जुन्नर के भौगोलिक महत्व को बढ़ा रहे हैं। जुन्नर, जो कृषि में आत्मनिर्भर है; जुन्नर में सब्जियां, फल, दूध उत्पादन, यहां तक कि चावल से लेकर जवार, अंगूर से लेकर अनार तक, गन्ने से लेकर ग्रीनहाउस सब्जियां और फूलों की खेती की जाती है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा बांध होने का सन्मान जुन्नर तहसील को है।
पिंपलगांव जोगा, माणिक डोह, यडगांव, चिलेवाड़ी पांचघर, और वडज ऐसे प्रमुख बांध जुन्नर में हैं। ऊबड़-खाबड़ इलाके और पहाड़ी इलाकों के कारण जुन्नर को आरक्षित हरित पट्टी घोषित किया गया है। इसका फायदा यह है कि जुन्ना\र में खुली हवा शुद्ध रहती है।
और जुन्नर रहने, यात्रा करने, आराम करने लिए एक बहुत ही उपयोगी स्थान बन गया है। साथ ही, जुन्नर में पाई जाने वाली मटन भाकरी और मसाला वडी [मासवड़ी] का मात्र वर्णन नहीं किया जाना चाहिए बल्कि वास्तविक रूप मे स्वाद लेना है। जुन्नर में ऐतिहासिक, भौगोलिक, प्राकृतिक, धार्मिक, कृषि, जीवन शैली, रहन-सहन, खान-पान के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है, यहां तक कि हर मुद्दे पर एक किताब भी बनाई जा सकती है।
जुन्नर के पर्यटन गौरव को संरक्षित करने का, पर्यटन से रोजगार निर्मिती और शाश्वत विकास का यह सारा कार्य “जुन्नर पर्यटन विकास निगम” के माध्यम से शुरू किया गया है। “शिवाजी ट्रेल” के माध्यम से जुन्नर में किले की संस्कृति के संवर्धन और संरक्षण का अतुलनीय कार्य शुरू हो गया है। एक जुन्नरकर होने के नाते मैं इस गौरव को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाना चाहता हूं। दुनिया भर से लोग जुन्नर आएं और इससे जुन्नर में रोजगार सृजित हों। और यह मेरा सपना है कि यह सब एक अनुशासित वातावरण में हो।
2011 से हमारी हाचिको टूरिझम संस्था, ईसी विचार के साथ पर्यटन, प्रशिक्षण मे काम कर रही है। पराशर कृषि-पर्यटन के माध्यम से जुन्नर की कृषि एवं ग्रामीण धरोहर का अनुभव देशविदेश के लोगोंको देते आया रहा है। आने वाले वर्षों में कई अच्छे बदलाव की उम्मीद है। इसे जुन्नर के समर्थन और जुन्नर में प्रकृति की सुंदरता के प्रेमियों की जरूरत है। आइये, इज प्रयास मे सहयोग डिजिए।